क्या है केदारनाथ यात्रा ? ( Know about kedarnath yatra)
केदारनाथ यात्रा भारत में होने वाली धार्मिक यात्राओं में प्रमुख यात्रा है जो की प्रतिवर्ष मई के महीने में शुरू होकर जून के अंत तक चलती है केदारनाथ धाम भारत के उत्तराखंड राज्य में स्थित रुद्रप्रयाग जिले में आता है जो की गढ़वाल हिमालय के एक हिस्से में स्थित है। केदारनाथ धाम हिन्दू धर्म में आने वाले सबसे पवित्र स्थानों में से एक है जहाँ स्वयं भगवान् शिव को विराजमान माना जाता है यह संपूर्ण धाम भगवान् शिव को समर्पित है जहाँ प्रतिवर्ष करोड़ों श्रद्धालु इस धार्मिक यात्रा के आनंद प्राप्त करने आते है।
केदारनाथ धाम का महत्व इसलिए भी अधिक है क्युकी इस धाम को भगवान् शिव के १२ ज्योतिर्लिंगों में से एक स्थान प्राप्त है और केदारनाथ धाम भारत में होने वाले चार धाम यात्रा का भी एक प्रमुख धाम है जिसकी मान्यता पुरे भारतवर्ष में है। इस यात्रा को करने से व्यक्ति जनम और मृत्यु के जीवन से मुक्ति पाकर मोक्ष को प्राप्त होता है
केदारनाथ धाम का इतिहास?
केदारनाथ धाम का जिक्र कई हिन्दू धार्मिक ग्रंथों में देखने को मिलता है जहाँ इस पवित्र धाम के महत्व का बखान है इतिहासकार बताते है की केदारनाथ धाम का निर्माण महाभारतकालीन है जिसका निर्माण पाण्डु पुत्रो ने स्वयं अपने हाथों से किया था और ऐसा माना जाता है की पाण्डवों ने इसी स्थान पर हजारो वर्षो तक तपस्या की थी। यहाँ आज भी पहुंचे हुए संत महात्मा गुफाओं में रहकर भगवान् शिव की आराधना करते है जिनके दर्शन सौभाग्य से ही प्राप्त होते है। यह स्थान साल के बाकि महीनों में बर्फ से ढका हुआ रहता है और इस दुर्गम जगह पैर आना मुश्किल होता है इसलिये यह यात्रा सिर्फ जब उत्तर भारत में गर्मिया होती है उन्ही दिनों में खोली जाती है
ऐसा माना जाता है की पहले जो महाभारतकालीन केदारनाथ मंदिर था उसका स्वरुप कुछ अलग था और अभी जो वर्तमान मन्दिर यहां स्थित है इसका निर्माण गुरु आदि शंकराचार्य ने कराया था जिन्हे देवता भी अपना गुरु मानते थे अदि शकराचार्य भगवान् शंकर के सबसे बड़े उपासक थे। इस मंदिर को बनाने में विशालकाय पत्थरों का इस्तेमाल हुआ है जिन्हे एक के ऊपर रखकर इस सुन्दर मंदिर का निर्माण हुआ है।
यह मंदिर पत्थर के एक विशाल चबूतरे के ऊपर बना हुआ है जो की देखने में काफी भव्य बना हुआ है। केदारनाथ धाम की यात्रा प्राकर्तिक नज़रों से भरी हुई है यहाँ एक और जहाँ हरे भरे वृक्ष आपका मन मोह लेते है वही दूसरी ओर बर्फीली पहाड़ियां आगंतुकों का स्वागत अपनी बाहें फैलाये करती है। यहाँ का मौसम बहुत ही सुखद है और यहाँ सर्दी वर्ष के सभी महीनों में रहती है। केदारनाथ का मतलब होता है मैदानों का ईश्वर अतः इस मंदिर के गर्भगृह में भगवान् शिव काले रंग के शिला रूपमें विराजमान है।
क्या है केदारनाथ की कहानी ? (Story of Kedarnath)
पौराणिक कथाओं के आधार पर श्री केदारनाथ धाम की कथा कुछ इस प्रकार है जब महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ और पाण्डवों ने कौरवों पैर विजय प्राप्त की उसके उपरांत धर्मराज युधिस्ठिर जगह जगह भटकते रहे पर अपने पूर्वजों की मृत्यु का जो बोझ उनके मन में था वह उससे निरंतर परेशान थे और अपने अन्य भाइयों के साथ शान्ति की खोज में विचरण कर रहे थे तभी महान संत व्यास जी की उनसे भेट हुई और उन्होंने युधिस्टिर और उनके भाइयों का मार्गदर्शन कर बतलाया की उन्हें शिव से जाकर छमा मांगनी चाहिए
जो भी महाभारत में उन्होंने किया उस सबसे भगवान् शिव ही उन्हें पाप मुक्त कर सकते है। तब जाकर उन्होंने उन दुर्गम पहाड़ियों पर जाकर तपस्या की और अंत में भगवान् शिव ने उन्हें एक भेंसे के रूप में दर्शन दिए जिसे बाकि पांडव नहीं पहचान सके लेकिन पाण्डु पुत्र भीष्म ने भगवान् शंकर को भेंसे रूप में पहचान लिया और उनसे छमा मांगने हेतु उनको पकड़ने भगा यह देखकर भगवान् शिव ने भी भागने का प्रयास किया और जब भीम ने उन्हें पकड़ा तब उनकी पूँछ और पीठ का आधा हिस्सा ही उनकी पकड़ में आया और बाकि का आधा शरीर भूमिगत हो गया तब पाण्डवों ने उसी आधे हिस्से को शंकर रूप मान उनकी पूजा अर्चना की और उनके विशाल मंदिर की स्थापना की
जिसे लोग आज श्री केदारनाथ धाम के नाम से जानते है। ऐसा माना जाता है की उस भैंसे रुपी भगवान् शिव का बाकि हिस्सा कहीं दूर जाकर उत्पन्न हुआ था जो की आज भारत के पडोसी देश नेपाल में स्थित है जिसे लोग पशुपतिनाथ के नाम से जानते है।
केदारनाथ यात्रा 2022 से जुडी जानकारी
हर साल की तरह केदारनाथ यात्रा को भारी संख्या में श्रद्धालु देश के विभिन्न हिस्सों से इस यात्रा को संपन्न करने आते है इस यात्रा का सुभारम्भ हर साल अप्रैल के महीने में होता है और यह यात्रा सितम्बर माह तक चलती है पर भक्तो की भारी भीड़ यहाँ सिर्फ जून के महीने में रहती है और बारिश शुरू होने के साथ ही यह यात्रा समापन की और बढ़ने लगती है।
गत वर्ष से इस यात्रा का सञ्चालन कोरोना महारानी की वजह से सुचारु रूप से नहीं हो पाया और यह यात्रा सभी तीर्थ यात्रियों के स्थगित कर दी गयी थी। ऐसा माना जा रहा था की वर्ष 2022 में इस यात्रा का सुभारम्भ उसी प्रकार होगा जैसा की हर साल होता आया था पर फिर से अप्रैल माह में कोरोना माह की बीमारी के चलते इसका सचालन स्थगित कर दिया गया है
सभी प्रमुख चार धाम के कपाट मई के महीने में विधि विधान पूर्वक खोल दिए गए है और जून १४ से उत्तराखंड राज्य के जिन जिलों में यह प्रमुख चारधाम आते है जैसे की रुद्रप्रयाग सोनप्रयाग आदि अभी उन ज़िलों के लोगो के लिए यह यात्रा चालू कर दी गयी है राज्य सरकार के निर्देश अनुसार ऐसा माना जा रहा है की यह यात्रा जुलाई के महीने में सुचारु रूप से चालू की जा सकती है। और भक्तों को एक बार पुनः इस पवित्र भूमि के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हो सकता है।
केदारनाथ यात्रा क्यों करनी चाहिए ?
केदारनाथ धाम धरती पर विराजमान भगवान् शिव के पूजा स्थलों में अत्यंत प्राचीन है जिसकी ख्याति विश्व भर में फ़ैली हुई है। यह मंदिर भगवान् शंकर के १२ ज्योतिर्लिंगों में से एक है इस वजह से भी यहाँ अधिक से अधिक संख्या में लोग आते है इस दिव्य धाम का स्थान गढ़वाल हिमालय सीमा में आने वाले पांच केदार नाम के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से भी एक है जिसकी यात्रा लांखों लोग हर वर्ष करते है। और केदारनाथ धाम का सबसे मुख्य कारन इसका हिन्दू धर्म की पवित्र चार धाम यात्रा में से एक स्थान होना है जिसकी यात्रा करने देश के कोने कोने से लोग आते है।
इस यात्रा का महत्व हिन्दू धर्म के कई ग्रंथो में किया गया था और इस ख़ास जगह को स्वयंभू भी कहा जाता है जहाँ भगवान् शंकर जिन्हे शम्भू भी कहा जाता है खुद प्रकट हुए है। उत्तराखंड राज्य को भारत वर्ष में लोग देव भूमि के नाम से भी जानते है जहाँ के चप्पे चप्पे में देवी देवताओं का वास मौजूद है इस धार्मिक यात्रा को करने से आप संसार में किये गए पापों से मुक्ति पाते है।
यह भूमि पर्यटक , प्रकृति से प्रेम करने वाले लोगों , श्रद्धालुओं, और रोमांचक पर्यटन में रूचि रखने वाले लोगों के लिए किसी जन्नत से कमी नहीं है। आज भी उत्तराखंड की भूमि पर बने ट्रैक्स पर देश भर और दुनिया के पर्वतरोही आते है और यहाँ के स्वक्ष और पवित्र वातावरण में इस खेल का आनंद लेते है।
पांच केदार किसे कहा जाता है।
उत्तराखंड राज्य के गढ़वाल हिमालय राज्य के अंतर्गत आने वाले भगवान् शिव के पांच प्रमुख धार्मिक स्थलों को पांच केदार कहा जाता है। ऐसा माना जाता है की उत्तराखण्ड राज्य के इन सभी प्रमुख शिवालयों में भगवान् खुद शिवलिंग रूप में विराजमान है और यह पांच केदार यहाँ के निवासियों के सदैव रक्षा करते है। इन पांच प्रमुख स्थलों में से केदारनाथ का स्थान प्रमुख है जिनकी शोभा पुरे विश्व भर में फैली हुई है। इन पांच केदार के नाम कुछ इस प्रकार है तुंगनाथ , रुद्रनाथ , कल्पेश्वर , मध्यमेश्वर एवं केदारनाथ। इन सभी धार्मिक स्थलों का अपना अपना ख़ास महत्व है और यह वर्ष भर श्रद्धालु और पर्यटकों से गुलज़ार रहते है। पांच केदार का महत्व खासकर उत्तराखंड राज्य में अधिक है और इस राज्य के निवासियों के लिए पांच केदार के दर्शन ख़ास होते है
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केदारनाथ यात्रा कैसे करे ?(How to Travel Kedarnath)
उत्तराखंड स्थित केदारनाथ धाम यात्रा का हिन्दू धर्म में एक ख़ास महत्व है जिसकी वजह से यहाँ हर वर्ष श्रद्धालु और पर्यटकों का ताँता लगता है। यह यात्रा एक सामान्य यात्रा नहीं है बल्कि इस यात्रा में आपको सभी तरह का अनुभव प्राप्त होता है यह यात्रा सड़क से लेकर रेल और फिर बस और टैक्सी से लेकर पैदल यात्रा तक हर पल का आपको अनुभव कराती है और श्रद्धालुओं के भगवान् शिव पर अटूट विश्वास की वजह से वह वो सारी बाधाओं को पार करते हुए भगवान् शिव के दर्शन करते है
यहाँ पहुँचने के लिए सबसे नजदीक हवाई अड्डा जॉली ग्रांट है जो की देहरादून में स्थित है जो की उत्तराखंड की राजधानी है। इस हवाई अड्डे की दूरी लगभग २50 किलोमीटर है। अगर आप रेल द्वारा इस यात्रा पर पहुंचना चाहते है तो यहाँ का सबसे नजदीक रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है जो की लगभग 230 किलोमीटर पर स्थित है ज्यादातर लोग रेल यात्रा करके ही केदारनाथ धाम तक पहुँचते है।
ऋषिकेश पहुँच कर यात्री बस या टैक्सी पकड़कर गौरीकुंड तक पहुँचते है जो की यात्रा का पड़ाव है यहाँ आप रात्रि विश्राम के बाद दूसरे दिन भगवान् केदारनाथ की 14 किलोमीटर की पैदल यात्रा पर चलना पड़ता है गौरीकुंड से जब ये यात्रा आप प्रारम्भ करते है तो आपको रस्ते में बेहतरीन प्राकर्तिक नज़ारे देखने को मिलते है अथवा अन्य रमणीक स्थल जैसे कि भीमबली, लिंचौली, जंगल चट्टी यात्रा के बीच में पड़ने वाले पड़ाव है जहाँ के खूबसूरत नज़ारे आपको निशब्द कर देते है। यात्रा का अंतिम पड़ाव केदारनाथ बेस कैंप है जहा यात्रियों के ठहरने की उचित व्यवस्था की जाती है।
केदारनाथ मंदिर में क्या क्या देखे ?
केदारनाथ मंदिर पहली नज़र में देखने पर एक विशाल मंदिर जैसा दीखता है जिसे की विशाल पठारों को जोड़कर इसका निर्माण किया है और यह देखने में महाभारतकालीन ही लगता है। मंदिर के सामने एक विशाल नंदी बने हुए है जिनको की शिव के गण के रूप में लोग पूजते है। इस मंदिर के मुख्य गर्भ गृह में भगवान् शंकर काले और भूरे रंग की चट्टान के रूप में उपस्थित है जो देखने में किसी भैंसे की पीठ के सामान ही प्रतीत होती है।
इस मंदिर के मंडप में भगवान् कृष्णा द्रौपदी और पांचों पांडवों की मूर्तियां भी बनी हुई है जिनके दर्शन करके लोग आशीर्वाद प्राप्त करते है। यह मंदिर प्राकर्तिक नज़ारों से भरा हुआ है यहाँ चारों तरफ बर्फीली पहाड़ियां घने जंगल खूबसूरत नदिया और झरने देखकर हर यात्री और पर्यटक शिवमय हो जाता है। केदारनाथ धाम के मुख्य आकर्षण है गौरी कुंड, चोराबरी ताल, भैरव टेम्पल एंड वासुकीताल। जब भी आप केदारनाथ यात्रा पर आये इन विशेष स्थलों के दर्शन अवश्य करके जाए।
गौरीकुंड कैसे पहुंचे ?
गौरीकुंड केदारनाथ यात्रा का अंतिम पड़ाव है जहाँ से आगे केदारनाथ धाम की पैदल यात्रा शुरू होती है। जिसकी लगभग दूरी 14 किलोमीटर है। गौरीकुंड यात्रियों और उनके वाहनों के ठहराव का स्थान जहाँ से लोग अपने निजी और सरकारी वाहन छोड़कर भगवान् केदारनाथ जी की पैदल यात्रा शुरू करते है इतिहासकार बताते है की गौरी कुंड की उत्पत्ति माँ पारवती जी के गौरी नाम से हुई यह वही स्थान है जहाँ माँ गौरी ने भगवान् शिव की वर्षो तक पूजाऔर आराधना की जिससे की उनका विवाह भगवान् शिव के साथ संपन्न हो सके। यह स्थान प्राकर्तिक दृश्यों से भरा हुआ है
यहाँ पहाड़ों से गिरते बहुत ही मनोरम झरने है जिनमे श्रद्धालु स्नान कर आगे की यात्रा शुरू करते है। यहाँ माता गौरी का बहुत ही प्राचीन मंदिर है जिसके दर्शन करने के उपरांत ही यात्री केदारनाथ जी की पैदल यात्रा शुरू करते है । यहाँ आपको ठहरने के उचित स्थान बहुत ही आसान मूल्यों में मिल जाते है।
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चोराबरी ताल कैसे पहुंचे ?
चोराबरी ताल केदारनाथ धाम की यात्रा के बीच में पड़ने वाली एक बहुत ही मनोरम झील है जो की बर्फीली पहाड़ियों से निकलकर आती हुई केदारनाथ धाम के रस्ते गौरीकुंड के पास तक पहुँचती है। इस झील का मुख्या श्रोत मन्दाकिनी नदी जो की लगभग ४००० मीटर की ऊंचाई पर स्थित है जब यात्री गौरीकुंड से केदारनाथ धाम की अपनी पैदल यात्रा शुरू करते है तब यह झील लगभग ४ किलोमीटर चलने के बाद यात्रियों को दिखती है।
कुछ लोग इस ख़ास झील को गाँधी सरोवर भी बोलते है जैसा की माना जाता है की यहाँ गाँधी जी की अस्थियों के कुछ अवशेष बहाये गए थे। इस चोराबारी ताल से होकर ही आप इस दिव्या यात्रा के लिए आगे बढ़ते है जहाँ के हृदय प्रिय दृश्य आपको और आपकी अंतरात्मा को तरोताज़ा कर देती है। कुछ साधु संत इस झील के किनारे स्नान भी करते है पर यह हर किसी के लिए मुमकिन नहीं है क्युकी यहाँ का पानी बहुत ठंडा होता है और वातावरण भी।
केदारनाथ धाम स्थित भैरवनाथ मंदिर कैसे पहुंचे ?
केदारनाथ धाम के समीप ही एक और दैविक स्थान मौजूद है जिसे भैरवनाथ धाम के नाम से जाना जाता है। केदारनाथ धाम के छेत्रपाल के रूप में लोग भैरवनाथ को पूजते है ऐसा माना जाता है की भैरवनाथ ही संपूर्ण केदारनाथ घाटी की रक्षा करते है और वहां आने वाले हर पर्यटक पर उनकी विशेष कृपा रहती है ऐसा माना जाता है की भैरव नाथ के दर्शन करना बेहद जरुरी है यह स्थान सर्दी के दिनों में बंद रहता है और बर्फ से ढका रहता है। यहाँ से गढ़वाल हिमालय में आने वाले पर्वत श्रंखलाओं का बेहतरीन नज़ारा देखने को मिलता है। आप सभी को केदारनाथ धाम आने पर भगवान् केदारनाथ के साथ श्री भैरवनाथ के भी दर्शन अवश्य करने चाहिए।
वासुकीताल कैसे पहुंचे?
केदारनाथ धाम से लगभग 8 किलोमीटर की पैदल यात्रा करने पर आप वासुकीताल पर पहुँचते है यह एक पवित्र झील है और बहुत ही रमणीक स्थल है पौराणिक कथाओं के आधार पर ऐसा माना जाता है की भगवान् विष्णु ने यहाँ रक्षाबंधन के ख़ास मुहूर्त पर स्नान किया था। यह एकमात्र स्थान है जहाँ आपको ब्रहम्म कमल खिलते हुए मिल जायेंगे इसके साथ ही अन्य तरह के खूबसूरत पेड़ पौधे और औषधियां यहाँ आपको देखने को मिलते है।
यह स्थान समुद्र ताल से 14200 फ़ीट के ग्लेशियर के मध्य बसा हुआ है यहाँ का मौसम अति लुभावना रहता है और यहाँ हर वर्ष बड़ी संख्या में पर्वतरोहि देश विदेश से आते है अथवा यह स्थान दुनिया भर के जाने माने फोटग्राफरों के बीच भी अति लोकप्रिय है जो की इस स्थान पर आकर अपने मनभावन दृश्यों को अपने कैमरे में क़ैद करते है।
गुरु आदी शंकराचार्य समाधी-
जैसा की आप जानते है की श्री केदारनाथ धाम का निर्माण गुरु अदि शंकराचार्य ने 8 वी शताब्दी में किया था। ऐसा मन जाता है की अदि शंकराचार्य भगवान् शंकर के सबसे बड़े उपासक थे जिन्होंने वर्षो तक इस स्थान पर भगवान् शिव की आराधना की और सिर्फ 32 साल की उम्र में उन्होंने देह का त्याग कर केदारनाथ की भूमि पर ही समाधी ली थी।
वर्तमान में उपस्थित केदारनाथ मंदिर के ठीक पीछे अदि शंकराचार्य का पूजा स्थल और समाधी बनी हुई है। जिसके दर्शन करने केदारनाथ आने वाले सभी श्रद्धालु करने जाते है। यह स्थान गौरी कुंड से लगभग 16 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है जहाँ आप पैदल मार्ग द्वारा पहुँच सकते है।
केदारनाथ धाम दर्शन के लिए कब जाए ?
केदारनाथ दर्शन श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए हर वर्ष अप्रैल महीने में खोले जाते है और जून के अंत तक लगभग 2 से 3 महीने ये यात्रा सुचारु रूपसे चलती है यही वो समय होता है जब केदारनाथ धाम सबसे ज्यादा व्यस्त होता है। जून के बाद यहाँ बारिश शुरू हो जाती है और इस स्थान पर आना काफी जोखिम भरा हो सकता है क्युकियाहन हिमस्खलन की घटनाये आम बात है वैसेकेदरनाथ धाम के दर्शन करने के लिए सबसे शांत महीने सितम्बर का है जब यहाँ भीड़ भी कम हो जाती है और मौसम भी खुशगवार होता है।