भारत वर्ष में सर्वाधिक हिन्दू धर्म के भक्त तीन श्रेणियॉं में बाटे रहते है जो की इस प्रकार है शैव, वैष्णव और शक्ति ,अर्थात जो लोग शक्ति के पूजक है वो देवी माँ के विभिन्न रूपों की उपासना करते ह।
माँ और अदि शक्ति के रूप के समागम से ही वैष्णो देवी उत्पन्न हुई है , वैष्णो देवी के स्वरुप में विराजमान तीन प्रमुख पिण्डिया जिनमे महाकाली , महासरस्वती और महालक्ष्मी का वास है उनके दर्शन हेतु देश में हर जगह से हर वर्ष लाखों की तादात में लोग दर्शन करके माता वैष्णो देवी के दरबार आते है ऐसा मन जाता है की यहाँ दर्शन करने मात्रा से ही बड़ी से बड़ी मनोकामना पूर्ण हो जाती है।
त्रेता युग में दानवों ने धरती पर पाप का ऐसा घोर तांडव मचाया की उसके उपाय स्वरुप माता वैष्णो देवी को कन्या रूप धारण करके उन दानवों का संघार करना पड़ा और उसके बाद वो कभी वापस इस धरती से नहीं लौटी और वैष्णोदेवी धाम में वो अदि शक्ति आज भी विराजमान जीने करोड़ों भक्त दुनिया भर से यहाँ आते है देवी उमा, रमा और वाणी के संयुक्त रूप से ही वैष्णो देवी की उत्पत्ति हुई है
वैष्णोदेवी यात्रा , कब और कैसे जाए
वैसे तो वैष्णो देवी यात्रा साल में हर वक़्त चालु रहती है पर यहाँ सर्वाधिक भीड़ गरमियों के मौसम में रहती है जब लगभग 1 लाक लोग प्रतिदिन माता रानी के दर्शन करते है बच्चों के छुट्टियों के वक़्त यहाँ लोग अक्सर बड़े बड़े समूह में आते और यहाँ आकर इस भव्य यात्रा का आनंद उठाते है जहाँ कुछ लोग पालकी, तो कुछ पिट्ठू के सहारे इस यात्रा को सम्पूर्ण करते है आम वैष्णो देवी जी का मंदिर त्रिकूट पर्वत पर विराजमान है जिनके दर्शन की भाति लोगों को पैदल यात्रा करने का सौभाग्य प्राप्त होता है और दुर्गम पहाड़ पार करने के बाद लोग इस अंतिम पड़ाव तक पहुँचते है , पुराने वक़्त में यह यात्रा काफी दुर्गम थी लेकिन अब पर्यटकों और श्रद्धालुओं की भारी भीड़ के दबाब में इसे काफी सुगम बना दिया है
अगर आप सरद मौसम के अदि है तब यहाँ दिसंबर जनवरी का मौसम आपके लिए सबसे वाजिफ होगा जब आप सार्ड मौसम के साथ बर्फ से ढके हुए पहाड़ भी देख सकते है , वैष्णो देवी यात्रा जम्मू कश्मीर राज्य के जम्मू जिले में पड़ती है जिसमे यह यात्रा कटरा शहर से सुरु होती है जहाँ यात्री ठहर कर अपने समय अनुसार यात्रा का प्रारम्भ एवं अंत करते है, जानकारों के हिसाब से इस यात्रा को पूर्ण करने का सही समय अक्टूबर नवंबर एवं फ़रबरी एवं मार्च है।
वैष्णोदेवी की कहानी
त्रेता युग में माता वैष्णवी ने एक दरिद्र के घर कन्या रूप में जन्म लिया और बचपन से है वह पूजा पाठ और भगवान् विष्णु के ध्यान पूजन में मगन रहने लगी जब वह व्यस्क हुई तब अपने मन है मन उन्हें भगवान् विष्णु से विवाह का मन बना लिया और उनकोंपने के लिए तपस्या करने लगी जैसे जैसे समय बीतने लगा उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर एकदिन भगवान् विष्णु के त्रेता युग के अवतार प्रभु श्री राम ने उन्हें दर्शन दिए एवं उन्हें बताया की जिस चीज़ के लिए आप प्रयासरत है वह संभव नहीं है क्युकी इस युग में मेरा विवाह पूर्ण हो चूका है एवं मेरी पत्नी माता सीता है तब जाकर माता वैष्णवी ने उनसे आग्रह किया की इस जनम में नहीं तो किस जन्म में उनका यह सपना पूरा होगा तब उन्होंने बताय की कलयुग में जब वह कल्कि अवतार लेंगे तन वह आकर उन्हें किसी अन्य भेष में दर्शन देंगे और अगर उन्हें पहचान लिया तो वह उनसे विवाह करेंगे तब तक वह त्रिकूट पर्वत पर विराज मान रहकर उनका इंतज़ार करे ,
एक अन्य कहानी इस प्रकार है की माता वैष्णवी ने बाल रूप में है दानवो के विनाश का बीड़ा उठाया था यह बात जब राक्छ्सो को ज्ञात हुई तब वह उनका पीछा करके उन्हें मारने के लिए दौड़े तब उन्होंने जगह जगह छुपकर अपनी जान बचाई और अंत में जाकर त्रिकूट पर्वत पर उन राक्छसों का वश किया तब से लेकर आज तक समस्त पृथ्वी के दुखो के निवारण के लिए माता वैष्णो देवी का दरबार सजता है।
वैष्णो देवी यात्रा का ख़ास महत्व
वैष्णो देवी यात्रा साल भर आयोजित होती अथवा यह यात्रा साल में कभी भी बंद नहीं की जाती और यहाँ भक्तों का ताँता हर वर्ष लगा रहता है लेकिन नवरात्रे के समय इस यात्रा का ख़ास महत्व है जब यहाँ श्रद्धालुओं की संख्या काफी बाद जाती है ऐसा मन जाता है की नवरात्रे के समय आदि शक्ति माँ वैष्णवी के दर्शन का ख़ास महत्व है एवं दिल से मांगी हुई मुराद यहाँ अवस्य पूरी होती है ,देवी माँ के नवरात्रे हर वर्ष में दो बार पड़ते है एक मार्च अप्रैल महीने में और दूसरे सितम्बर के महीने में जब यहाँ विशेष आयोजन किये जाते है वैष्णो देवी की संपूर्ण यात्रा सिर्फ १४ किलोमीटर की है जहाँ पहाड़ों के बीच से बनाये हुए सुन्दर रास्ते से गुजरकर आप माता वैष्णो देवी के भवन तक पहुंचते है
उस वक़्त माता रानी के समस्त दरबार को विशेष फूलों द्वारा सजाया जाता है और जगह जगह पर रंगारंग कार्यक्रम भजन कीर्तन एवं भंडारे का आयोजन किया जाता है जहाँ लाखों भक्त प्रसाद पाते है
वैष्णो देवी यात्रा पर कैसे पहुंचे
वैष्णो देवी यात्रा पर जाने के लिए सबसे पहले आपको जम्मू पहुंचना पड़ेगा , जम्मू राज्य देश के बड़े शहरों से रेल अथवा सड़क मार्ग द्वारा जुड़ा हुआ आप यहाँ हवाई सफर तय करके भी पहुंच सकते है, जम्मू पहुँचने का सबसे सरल उपाय रेल यात्रा है को दक्षिण भारत के विभिन्न राज्य अथवा उत्तर भारत के सभी राज्यों से सीधे तौर पर जुडी हुई है जम्मू रेलवे स्टेशन पहुँचने पर आपको सीधे कटरा के लिए प्रस्थान करना पड़ेगा जो की वहां से लगभग ४० से ५० किलोमीटर की दूरीपर स्थित है , वहां पहुंचकर आप अपने बजट के हिसाब से होटल अथवा धर्मशाला बुक कर सकते है और उसके उपरांत आप यात्रा काउंटर पर जाकर अपनी दर्शन सम्बन्धी पर्ची अथवा टोकन ले सकते है और उसी हिसाब से सही समय पर अपनी यात्रा आरम्भ कर सकते है ,
दिल्ली जो की देश की राजधानी है वहां से भी जम्मू यात्रा के लिए आपको हर वक़्त टैक्सी, बस एवं रेल की उपलब्ध है , कई विभिन्न यात्री दिल्ली पहुंचकर भी सीधे बस अथवा ट्रैन द्वारा जम्मू का सफर तय करते है।
रेल विभाग ने वैष्णो देवी मंदिर की लोकप्रियता को देखते हुआ कुछ विशेष रेल ऐसी भी जो की सीधे आपको कटरा रेलवे स्टेशन तक भी पहुंचाती है आप अपनी सहूलियत के हिसाब से रेल यात्रा बुक कर सकते है
वैष्णो देवी यात्रा के प्रमुख पड़ाव
वैष्णो देवी यात्रा कटरा स्थित दर्शनी दरवाज़े से शुरू की जाती है इस विशाल दरवाज़े की कहानी कुछ इस प्रकार है जब कन्या रुपी माँ वैष्णवी ने पंडित श्रीधर को यहाँ सर्वप्रथम दर्शन दिए थे इसीलिए इसदरवाज़े का नाम दर्शनी दरवाज़ा रखा गया है। यहाँ से आप पूरे त्रिकूट पर्वत के मनोहरिक दर्शन भी कर सकते है यहाँ दो दरवाज़े बनाये गए है जो पुराना रास्ता है वो सीढ़ियों से यात्रा मार्ग की ओर जाता है जबकि जो नया दरवाज़ा बनाया गया है वह बाद में वैष्णोदेवी श्राइन बोर्ड द्वारा बनाया गया है जिससेआप पैदल मार्ग द्वारा वैष्णो देवी यात्रा पूर्ण कर सकते है। आर्मी द्वारा उपलब्ध सहायता केंद्र भी यहीं बना हुआ जहाँ आप यात्रा सम्न्बंधी जानकारी या फिर अन्य किसी परेशानी में सहायता प्राप्त कर सकते है।
आज से कई वर्ष पूर्व वैष्णो देवी यात्रा को पूरी करने में लोगोंको काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता था तब यह यात्रा पुराने मार्ग द्वारा की जाती थी जो की काफी पथरीला और अव्यवस्थाओं से भरा हुआ था पर अब वैष्णो देवी श्राइन की मदद से नव मार्ग का निर्माण हो चूका जो की इस कठिन यात्रा को काफी सुगम एवं सरल बना देता है इसका निर्माण १९९९ में किया गया था जो की अर्धक्वाँरी के समीप इंद्रप्रस्थ से शुरू होकर मुख्या भवन तक पहुँचता है।
यह नया रास्त काफी सुविधाओं से भरा हुआ है जहाँ ज्यादातर हिस्से को टीन के शेड द्वारा तैयार किया गया है जहाँ छाया की उचित व्यवस्था है यात्रा मार्ग में जगह जगह तहदे पानी की व्यवस्था, अपाहिजों के लिए बैटरी रिक्शा एवं पालकी की भी सुवुधा उपलब्ध है और संपूर्ण यात्रा मार्ग को इस तरह व्यवस्थित किया गया है की कहीं भीयात्रियों को भीड़भाड़ और असुविधा न हो
यात्रा में जगह जगह खाने पीने और ठहरने की भी उचित व्यवस्था है जहाँ किसी भी परिस्थति में यात्री अपनी यात्रा को आसानी से पूरा कर सके।
यात्रा के प्रमुख पड़ाव
बाण गंगा -जैसे है आप कटरा से अपनी पैदल यात्रा आरम्भ करते है कुछ है दूर चलने पर आपको बाण गंगा के दर्शन होते है जो की समुद्र ताल से २७०० फ़ीट के ऊंचाई पर स्थित है यहाँ का वातावरण बहुत है सुन्दर एवं सुगम है यहाँ के स्वक्ष जल से सिर्फ हाथ मुँह धोने पर है आपकी सारी थकान मिट जाती है यहाँ काफी यात्रा आकर स्नान भी करते है ऐसा माना जाता है की यहाँ जब देवी वैष्णवी एक बार लंगूरों के साथ खेल रही थी तभी उन्होंने पाया की सभी जानवर प्यासे थे और पानी कहीं पर नहीं था तभी उन्होंने कंधे से तीर कमान उतारकर बांच चला कर गंगा उत्पन्न कर दी तब से आज तक यहाँ गंगा का निवास हैऔर लोग इसे बाण गंगा के नाम से जानते है
अर्द्धकुवारी –
अर्द्धकुवारी यात्रा का एक मुख्या पड़ाव जहाँ से आगे यात्रा लगभग आधी रह जाती है यहाँ आकर भक्त देवी माँ की छोटी सी गुफा के दर्शन करते है। ऐसा मन जाता है की देवी वैष्णवी ने यहाँ टेहेरकर भगवान् शिव की घोर तपस्या की थी और जब शिव के गण भैरव को इसका पता चला तो उन्होंने शिव के त्रिशूल से देवी माँ को त्रिकूट पर्वत स्थित मुख्या भवन तक पहुँचाया था यहाँ प्रतिदिन देवी माँ की भव्य आरती होती है जहाँ हजारो श्रद्धालु एकत्र होकर आरती का आनंद लेते है और प्रसाद ग्रहण करने के उपरांत आगे की यात्रा प्रारम्भ करते है
हिम कौड़ी
वैष्णो देवी यात्रा का अगला पड़ाव है हिम कौड़ी जो की श्राइन बोर्ड द्वारा बनाया गया है यह पड़ाव अर्द्धकुवारी से लगभग ३ किलोमीटर की दूरी पर बना हुआ है और यहाँ के मनमोहक प्राकर्तिक दृश्य आपको मंत्र मुघ्ध कर देंगे , यहाँ यात्रियों के विश्राम की उचित व्यवस्था है जहाँ सभीयात्री रुक कर यात्रा में विराम देते है , यहाँ के हरे भरे पहाड़ और नज़ारे यात्रा की थकान को पल भर में समाप्त कर देते है और यहाँ हरवक्त श्रद्धालुओं का मेला सा लगा रहता है , यहाँ खाने पीने की भी उचित व्यवस्था है जहाँ आप अपनी पसंद का भोजन कर सकते है , फोटोग्राफी के माध्यम से भी ये जगह यात्रियों के लिए उपयुक्त है
सांझी छत
ये यात्रा का अंतिम पड़ाव है जहाँ रूककर श्रद्धालु विश्राम करते है और कुदरत के बेहतरीन नज़ारों का लुतफ उठाते है इसी स्थान पर विशेष हेलिपैड बनाया गया है जहाँ से यात्री हेलीकाप्टर द्वारा यात्रा के लिए आते जाते है , अथवा यहाँ से आप हेलीकाप्टर सेवा बुक कर सकते है यहाँ से आगे का सफर चाहे आप हेलीकाप्टर सेवा से आये चाहे पैदल आये आपको पैदल ही तय करना पड़ता ह। यहाँ से मुख्य भवन की दूरी सिर्फ २ किलोमीटर है एवं यह यात्रा का सबसे रमणीक स्थल है जहाँ लोग आकर तस्वीरें खिचवाते है विभिन्न प्रकार के भोजनो का लुत्फ उठाते है और आगे की यात्रा के लिए खुदको तरोताज़ा करते है
वैष्णो देवी भवन
वैष्णोदेवी का अंतिम पड़ाव है वैष्णोदेवी भवान जहाँ गुफा के अंदर विराजमान माता वैष्णो देवी जिन्हे (महा लक्ष्मी , महा सरस्वती, और महाकाली ) के स्वरुप में तीन देवी की पिण्डियों को भक्तगण पूजा अर्चना करते है। इस गुफा की खोज ७०० वर्ष पूर्व पंडित श्रीधर द्वारा की गयी थी कई इतिहासकार बताते है की इस गुफा का इतिहास सदियों पुराना है और ये एक प्राकर्तिक गुफा है। यहाँ पहुंचकर यात्री सुबह शाम माता वैष्णो देवी की आरती एवं पूजा अर्चना का आनंद प्राप्त करते है अथवा कृतिम गुफा की द्वारा प्रवेश करके माता वैष्णो देवी के दर्शन करते है एवं अपनी मनोकामना पूरी होने की कामना करते है। यहाँ यात्रियों के रात्रि प्रवास की भी उचित व्यवस्था जहाँ बहुत ही कम दरों पर आपको कमरे उपलब्ध होते है। यहाँ से दर्शन करके भक्तगण वापसी यात्रा के लिए प्रस्थान करते है ,अथवा जो लोग भैरों घाटी के दर्शन लिए प्रस्थान करते है वे यहाँ से आगे की यात्रा के लिए प्रस्थान करते है
भैरों मंदिर, वैष्णो देवी
वैष्णो देवी भवन से लगभग २ किलोमीटर की सीढ़ी चढाई करके आप भैरोंघाटी पर पहुँच सकते है ये त्रिकूट पर्वत की सबसे ऊँची छोटी है जहाँ से पुरे भवन और द्रश्य का बेहद सुन्दर नज़ारा नज़र आता है , ऐसा माना जाता है की देवी माँ वैष्णवी ने भैरों नाथ के वध के बाद उसका शीश भवन से दूर फेक दिया जो लगभग भवन से ३ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है जिस जगह देवी न भैरों का वध किया था उस जगह पर आज वैष्णो माता का मुख्य भवन है और जहाँ उन्होंने शीश फेका ठोस जगह को भैरों घाटी के नाम से जाना जाता है माँ देवी ने भैरों के पश्चाताप के बाद उन्हें वरदान दिया था की जब कलयुग में लोग मेरे दर्शन करने त्रिकूट पर्वत पर आएंगे तब तुम्हारी पूजा और मान्यता भी उसी प्रकार होगी जिस प्रकार मेरी , ऐसा लोग मानते है की वैष्णो देवी यात्रा के उपरांत जो लोग भैरों घाटी के दर्शन करते है उनकी यात्रा संपूर्ण मानी जाती है। अथवा भैरों मंदिर के दर्शन करना सभी यात्रियों के लिए बेहद जरूरी है